हिंदी में बात करने में शर्म किस बात की?

हिंदी में बात करने में शर्म किस बात की?

Oct 31, 2023

Oct 31, 2023

हिंदी में बात करने में शर्म किस बात की?
हिंदी में बात करने में शर्म किस बात की?

क्या आप भरी सभा में हिंदी में बात करने के विचार मात्र से ही घबरा जाते हैं?

लोगों के सामने अपने स्वाभाविक स्वरुप को भाषा के माध्यम से ढांपने का प्रयास करते हैं?

मीटिंग में गलती से हिंदी बोलने के डर से परेशान हो जाते हैं?

दुनिया में आप ऐसे अकेले नहीं हैं। बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हे हिंदी भाषा के शब्दों का बोलचाल के समय मुँह से अनवरत निकल जाने का भय सताता रहता है और इस कारणवश वो अपना मुँह बंद ही रखते हैं, जिन्हे अजनबियों के सामने अपने उच्चारण को ले कर हिचक होती है।

हेलो मेरे पाठक, मैं हिंदी हूँ।

मैं भारत की सबसे प्रचलित भाषा हूँ। मेरा उपयोग अन्य देशों में भी हो रहा है। पर दुर्भाग्य से मेरा उपयोग मेरे भारतवासी बहुत कम ही करते हैं। मैं अपने गद्य, कविताओं, छंदों, व कहानियों के द्वारा भारतीय संस्कृति-सभ्यता व धार्मिक विचारधारा की अभूतपूर्व व्याख्या करने के बाद भी अपने देशवासियों की आदतों व रोज़-मर्रा की जीवनशैली में उचित स्थान नहीं बना पायी हूँ।

ये प्रत्यक्ष है की अंग्रेजी भाषा को आज इतना सम्मानजनक माना जाने लगा है की उसकी तुलना में मैं आज निम्नता की निशानी बन चुकी हूँ।

इतने पाखण्ड का क्या कीजियेगा?

सरकारी दस्तावेज़ों और सूचनाओं में आज भी मुझे प्रकाशित किया जाता है, पर बड़े-बड़े उद्योगों व व्यावसायिक क्षेत्रों में मेरा मूल्य ही नहीं है। अधिकांश महत्वपूर्ण संस्थानों और संगठनों की वेबसाइटों पर भी सूचनाएं भी मुझ में उपलब्ध हैं, पर मुझे आज की पीढ़ी में पढ़ने वाला ही कोई नहीं है।

आपने आखिरी बार हिंदी भाषा में कोई पत्र कब लिखा था? विद्यालय? महाविद्यालय? म्युनिसिपेलिटी ऑफिस के बाहर? चलिए पत्र तो पुराने हो गए। अब तो आप WhatsApp चलाते होंगे। क्या आप हिंदी में उतनी ही तेज़ी से टाइप कर सकते हैं जितना की अंग्रेजी में?

और अगर आपकी अंग्रेजी ख़राब है तो क्या हुआ?

कहाँ गए मेरे प्यारे भारतीय लाडले जो कभी मेरा भी प्रचार बड़े गर्व से करते थे?

अंग्रेजी में अच्छी पकड़ होना भी एक कौशल है, पर आवश्यकता क्यों? सबने अलग-अलग माध्यमों में शिक्षा ली है, और सब अलग-अलग भाषाओं में प्रवाहशील हैं। ऐसे में अगर आप हिंदी में बात करने में सक्षम हैं, तो हिंदी भाषा बोलने में झिझक क्यों?

पीढ़ी-पीढ़ी की बात है

अब इस बदलते दौर की मैं आपसे क्या उलाहना करूँ, मुझे सीखने के कारण जो दिन-पर-दिन कम होते जा रहे हैं। दफ्तरों, विद्यालयों, और हर औपचारिक वातावरणों में आज अंग्रेजी में बात करना एक बाध्यता बन चुकी है- और यह परिवर्तन धीरे-धीरे हुआ है।

बदलते और बढ़ते ज़माने के साथ विश्व में संचार-प्रसार के लिए एक भाषा- अंग्रेजी- ही फैलती गयी। मेरे देशवासियों ने भी अपनी बाहें खोल कर अंग्रेजी को शरण दी, पर फिर धीरे-धीरे आवश्यकतानुसार उसी का उच्चतम उपयोग करने लगे और मुझे भूलने लगे।

मैं यहीं रह गयी, समाज व देश मुझे लिए बिना ही आगे बढ़ गया।

और पढ़ें: Will Gen Z Save The Earth?

अँगरेज़ चले गए, अंग्रेजी व हीन भावना छोड़ गए

अंग्रेजी एक भाषा है। उसे सीखना एक कौशल है, आवश्यकता नहीं- इस बात को अपने दिमाग में डाल लीजिये।

कई देशों में अपनी भाषा में आंख से आंख मिलाकर बातें करना आत्मविश्वास की निशानी मानी जाती है। तो क्या मैं, विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक- हिंदी, अपने देशवासियों के आत्मविश्वास का कारण नहीं बन सकती?

मैं हूँ हिंदी, और मैं आपके योगदान व सम्मान की प्रतीक्षा कर रही हूँ।

#सोचेंक्यों #अभीकरें

क्या आप भरी सभा में हिंदी में बात करने के विचार मात्र से ही घबरा जाते हैं?

लोगों के सामने अपने स्वाभाविक स्वरुप को भाषा के माध्यम से ढांपने का प्रयास करते हैं?

मीटिंग में गलती से हिंदी बोलने के डर से परेशान हो जाते हैं?

दुनिया में आप ऐसे अकेले नहीं हैं। बहुत से व्यक्ति ऐसे हैं जिन्हे हिंदी भाषा के शब्दों का बोलचाल के समय मुँह से अनवरत निकल जाने का भय सताता रहता है और इस कारणवश वो अपना मुँह बंद ही रखते हैं, जिन्हे अजनबियों के सामने अपने उच्चारण को ले कर हिचक होती है।

हेलो मेरे पाठक, मैं हिंदी हूँ।

मैं भारत की सबसे प्रचलित भाषा हूँ। मेरा उपयोग अन्य देशों में भी हो रहा है। पर दुर्भाग्य से मेरा उपयोग मेरे भारतवासी बहुत कम ही करते हैं। मैं अपने गद्य, कविताओं, छंदों, व कहानियों के द्वारा भारतीय संस्कृति-सभ्यता व धार्मिक विचारधारा की अभूतपूर्व व्याख्या करने के बाद भी अपने देशवासियों की आदतों व रोज़-मर्रा की जीवनशैली में उचित स्थान नहीं बना पायी हूँ।

ये प्रत्यक्ष है की अंग्रेजी भाषा को आज इतना सम्मानजनक माना जाने लगा है की उसकी तुलना में मैं आज निम्नता की निशानी बन चुकी हूँ।

इतने पाखण्ड का क्या कीजियेगा?

सरकारी दस्तावेज़ों और सूचनाओं में आज भी मुझे प्रकाशित किया जाता है, पर बड़े-बड़े उद्योगों व व्यावसायिक क्षेत्रों में मेरा मूल्य ही नहीं है। अधिकांश महत्वपूर्ण संस्थानों और संगठनों की वेबसाइटों पर भी सूचनाएं भी मुझ में उपलब्ध हैं, पर मुझे आज की पीढ़ी में पढ़ने वाला ही कोई नहीं है।

आपने आखिरी बार हिंदी भाषा में कोई पत्र कब लिखा था? विद्यालय? महाविद्यालय? म्युनिसिपेलिटी ऑफिस के बाहर? चलिए पत्र तो पुराने हो गए। अब तो आप WhatsApp चलाते होंगे। क्या आप हिंदी में उतनी ही तेज़ी से टाइप कर सकते हैं जितना की अंग्रेजी में?

और अगर आपकी अंग्रेजी ख़राब है तो क्या हुआ?

कहाँ गए मेरे प्यारे भारतीय लाडले जो कभी मेरा भी प्रचार बड़े गर्व से करते थे?

अंग्रेजी में अच्छी पकड़ होना भी एक कौशल है, पर आवश्यकता क्यों? सबने अलग-अलग माध्यमों में शिक्षा ली है, और सब अलग-अलग भाषाओं में प्रवाहशील हैं। ऐसे में अगर आप हिंदी में बात करने में सक्षम हैं, तो हिंदी भाषा बोलने में झिझक क्यों?

पीढ़ी-पीढ़ी की बात है

अब इस बदलते दौर की मैं आपसे क्या उलाहना करूँ, मुझे सीखने के कारण जो दिन-पर-दिन कम होते जा रहे हैं। दफ्तरों, विद्यालयों, और हर औपचारिक वातावरणों में आज अंग्रेजी में बात करना एक बाध्यता बन चुकी है- और यह परिवर्तन धीरे-धीरे हुआ है।

बदलते और बढ़ते ज़माने के साथ विश्व में संचार-प्रसार के लिए एक भाषा- अंग्रेजी- ही फैलती गयी। मेरे देशवासियों ने भी अपनी बाहें खोल कर अंग्रेजी को शरण दी, पर फिर धीरे-धीरे आवश्यकतानुसार उसी का उच्चतम उपयोग करने लगे और मुझे भूलने लगे।

मैं यहीं रह गयी, समाज व देश मुझे लिए बिना ही आगे बढ़ गया।

और पढ़ें: Will Gen Z Save The Earth?

अँगरेज़ चले गए, अंग्रेजी व हीन भावना छोड़ गए

अंग्रेजी एक भाषा है। उसे सीखना एक कौशल है, आवश्यकता नहीं- इस बात को अपने दिमाग में डाल लीजिये।

कई देशों में अपनी भाषा में आंख से आंख मिलाकर बातें करना आत्मविश्वास की निशानी मानी जाती है। तो क्या मैं, विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक- हिंदी, अपने देशवासियों के आत्मविश्वास का कारण नहीं बन सकती?

मैं हूँ हिंदी, और मैं आपके योगदान व सम्मान की प्रतीक्षा कर रही हूँ।

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